K P B

स्वागतम...सुस्वागतम..."Nitya Study Centre" या सर्वसमावेशक ब्लॉग ला भेट दिलेल्या मान्यवरांचे हार्दिक स्वागत... शै. वर्ष-२०२०-२१ इ.१२ वी निकाल व मूल्यमापन पद्धती जाहीर... NEWS : दहावीच्या विद्यार्थ्यांना मिळणार ड्रॉईंगचे अतिरिक्त गुण... "ज्ञानगंगा" शैक्षणिक कार्यक्रम दहावी आणि बारावीच्या विद्यार्थ्यांसाठी, आजपासून सह्याद्री वाहिनीवर सुरू... दहावीचा निकाल तयार करण्याचे फॉर्मुले ठरले... MHT-CET Exam 2021: एमएचटी-सीईटी परीक्षेच्या ऑनलाईन अर्जांची नोंदणी आजपासून 7 जुलै पर्यंत राहणार सुरु नववी आणि अकरावीच्या विद्यार्थ्यांच्या मूल्यमापनाबाबत... कोविड टेस्ट...खूप  महत्वाची माहीती..अवश्य वाचा व इतरांनाही पाठवा... दहावी व बारावीतील विद्यार्थ्यांच्या परीक्षेसाठी ताण तणावाचे व्यवस्थापन - विशेष मार्गदर्शन सत्रांचे आयोजन... इ.11 वी व 12 वी आरोग्य व शारिरीक शिक्षण मुल्यमापन व गुणदान योजना... आनापान ध्यान साधना - अर्थ,पद्धत,फायदे आणि प्रशिक्षाणा विषयी माहिती.. दहावी आणि बारावीच्या लेखी व प्रात्यक्षिक परीक्षेच्या तारखा जाहीर...

Saturday, 27 February 2021

 संत रोहिदास यांचे दोहे पहिले १० अर्थासहित एकूण १३


ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,

पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो.



कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै

तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै

ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. यदि आदमी में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन सफल होना निश्चित है. ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है.

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास

प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास

जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो.

मन चंगा तो कठौती में गंगा

जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं.

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस

कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए, क्‍योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.

मन ही पूजा मन ही धूप,

मन ही सेऊं सहज स्वरूप

निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.

कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस

ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास

हीरे से बहुमूल्य हैं हरि. यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है.

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच

नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है.

१०

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है. ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती.


११

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।

तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।


१२

हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।

दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।


१३

वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।

सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।


संत रोहिदास दोहे समाप्त

No comments:

Post a Comment